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कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' |
"तू बड़ा बदमाश है बे! कल शाम क्यों नहीं आया था? वेतन माँगने तो 20वें ही दिन आ धमकता है और काम करते कलेजा फटता है सूअर का!"
"वेतन ही कौन सा अठमाशी दे देते हैं आप मुझे? इतना बड़ा चौक है, कन्या पाठशाला के कमरे और तीन पाखानों की तरफ़! तब कहीं दस आने पल्ले पड़ते हैं।"
"जहाँ अठमाशी मिले, वहाँ चला जा। बदमाश, गज भर की ज़बान निकालता है हर वक़्त! सारी दुनिया में जो क़ायदा है, वही हम देते हैं।"
यह हमारे प्रांत की एक प्रसिद्ध आर्य समाज के महामंत्री और आर्य समाज के मंदिर के भंगी नानक के बीच होने वाली एक आम 'इंटरव्यू' का नमूना है। महामंत्री जी आर्य समाज के बहुत अच्छे लेक्चरार हैं। अछूतोध्दार उनका ख़ास विषय है और उस पर जब वे बोलते हैं, तो कलेजा निकाल कर रख देते हैं। उस समय ऐसा मालूम होता है कि उनके मुँह से मनुष्यता की नदी बह रही है। मनुष्य मात्र की समानता के सिद्धांत का निरूपण करके जब वे अछूतों पर होने वाले अत्याचारों की कथा कहते हैं और पब्लिक की आँखों में भी करुणा की गंगा बह उठती हैं।
यह हमारे जीवन में बहने वाली विचारधाराओं के दो चित्र हैं, एक व्यवहार का और दूसरा विचार का। विचार वही स्थान है, जो आत्मा का,पर आत्मा शरीर के साथ ही जैसे काम करती है, वैसे ही विचार भी व्यवहार में आने के बाद ही अपनी शक्ति को प्रदान करता है। ऊपर के चित्र इस बात का प्रमाण हैं कि आज हमारे जीवन में - सिद्धांत और व्यवहार में एकता नहीं है। यह भयंकर स्थिति है।
(1942)